डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन – परिचय
1. जन्म और प्रारंभिक जीवन
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू (अब डॉ. अंबेडकर नगर) में एक गरीब और दलित परिवार में हुआ था। वे महार जाति से थे, जिसे उस समय समाज में अछूत माना जाता था। उनका पूरा नाम भीमराव रामजी अंबेडकर था। बचपन से ही उन्होंने जातिगत भेदभाव का दर्द झेला, स्कूल में अलग बैठाया जाता, पानी पीने की अनुमति नहीं दी जाती। लेकिन उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया।
2. शिक्षा के प्रति संघर्ष
भीमराव बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार थे। उनके पिता रामजी सकपाल ने उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए कठिन मेहनत की। अंबेडकर ने हाईस्कूल की परीक्षा 1907 में पास की, जो उस समय किसी दलित के लिए बहुत बड़ी बात थी। बाद में वे एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिल हुए और फिर उन्होंने बड़ौदा महाराजा की छात्रवृत्ति से अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की।
3. विदेश में शिक्षा और उपलब्धियाँ
अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र, राजनीति और समाजशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की। फिर वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए, जहाँ उन्होंने D.Sc. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की और बैरिस्टर बने। विदेश में उन्हें किसी प्रकार का जातीय भेदभाव नहीं झेलना पड़ा, जिससे उन्होंने जाना कि सामाजिक बराबरी संभव है – यदि समाज सही दिशा में जाए।
4. भारत वापसी और सामाजिक संघर्ष की शुरुआत
1923 में भारत लौटने पर, डॉ. अंबेडकर ने देखा कि भारत में अभी भी दलितों के साथ अत्याचार हो रहा है। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित हो।” उन्होंने कई आंदोलनों की शुरुआत की – जैसे महाड़ सत्याग्रह (1927), जहाँ उन्होंने सार्वजनिक जलस्रोतों पर दलितों का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया।
5. अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन
डॉ. अंबेडकर ने छुआछूत को खत्म करने के लिए अपने जीवन का हर क्षण समर्पित कर दिया। उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ और ‘जनता’ जैसे समाचार पत्रों की शुरुआत की, जिससे दबे-कुचले वर्ग की आवाज उठाई जा सके। उन्होंने न केवल समाज को जगाने का प्रयास किया, बल्कि कानून और नीति के माध्यम से बदलाव लाने की कोशिश की।
6. पूना समझौता और गांधी जी के साथ संवाद
1932 में डॉ. अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच 'पूना समझौता' हुआ। अंबेडकर चाहते थे कि दलितों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिले और अलग निर्वाचक मंडल बनाया जाए, जबकि गांधीजी इसके खिलाफ थे। बाद में समझौता हुआ कि दलितों को आरक्षित सीटें मिलेंगी, पर अलग निर्वाचन मंडल नहीं होगा। यह ऐतिहासिक घटना थी जिसने भारत के चुनावी ढांचे को प्रभावित किया।
7. संविधान निर्माण में भूमिका
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, 1947 में डॉ. अंबेडकर को देश का पहला कानून मंत्री बनाया गया और संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। उन्होंने भारत का संविधान तैयार किया, जो दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। उन्होंने इसमें समानता, धर्मनिरपेक्षता, स्वतंत्रता, और न्याय जैसे मूल अधिकारों को शामिल किया।
8. महिलाओं और श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम
अंबेडकर केवल दलितों के ही नहीं, बल्कि महिलाओं और श्रमिक वर्ग के भी मसीहा थे। उन्होंने महिला शिक्षा, समान अधिकार, मजदूरी, और कार्य की उचित स्थिति पर जोर दिया। उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ का प्रस्ताव रखा जो महिलाओं को संपत्ति और विवाह में बराबरी देता था। हालांकि इस बिल को उस समय पास नहीं किया गया, लेकिन यह आज भी महिलाओं के अधिकारों की नींव है।
9. बौद्ध धर्म की ओर झुकाव
डॉ. अंबेडकर ने देखा कि हिंदू समाज में छुआछूत और जातिवाद जड़ से नहीं हटाया जा सकता। उन्होंने कहा, “मैं हिंदू के रूप में जन्मा जरूर हूं, लेकिन मरूंगा नहीं।” उन्होंने बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन किया और 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। उन्होंने "धम्म चक्र प्रवर्तन" किया और लोगों को शांति, समता और करुणा के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया।
10. लेखन और बौद्धिक योगदान
डॉ. अंबेडकर एक महान लेखक और विचारक भी थे। उन्होंने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं जैसे:
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जाति का उन्मूलन
रुपये की समस्या
शूद्र कौन थे?
भाषायी राज्यों पर विचार
उनकी लेखनी में तीव्रता और समाज को बदलने की शक्ति थी।
11. निधन और अंतिम योगदान
डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ। वे जीवन भर समाज में समानता और न्याय की लड़ाई लड़ते रहे। उनके निधन के बाद लाखों लोग उनके दर्शन से जुड़े रहे। आज भी उनका नाम ‘बाबासाहेब’ के रूप में श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है।
12. डॉ. अंबेडकर की विरासत और आज का भारत
आज डॉ. अंबेडकर केवल दलितों के ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के महान नायक हैं। उनका संविधान आज भी भारत की रीढ़ है। भारत में सामाजिक न्याय, आरक्षण, महिला अधिकार, श्रमिक कानून – इन सबकी नींव अंबेडकर के विचारों में है। उन्हें 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
निष्कर्ष
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन साहस, संघर्ष, और समर्पण की एक महान मिसाल है। उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण को समाज में बदलाव लाने के लिए जिया। उन्होंने जातिवाद को ललकारा, कानून को बदलने की शक्ति दिखाई, और करोड़ों लोगों को आत्मसम्मान से जीना सिखाया।
उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है:
"शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।"