भगत सिंह: एक क्रांतिकारी आत्मा की अमर कहानी
1. एक साधारण गांव से असाधारण यात्रा
पंजाब के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा गांव में 28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह, एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जिनकी रगों में देशभक्ति बहती थी। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ पहले से ही सक्रिय थे। भगत सिंह ने बहुत कम उम्र में ही यह ठान लिया था कि वे अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित करेंगे।
2. बाल्यावस्था में ही क्रांति की चिंगारी
13 साल की उम्र में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, तब भगत सिंह अमृतसर पहुंचे और वहां की खून से सनी ज़मीन देखी। यही घटना उनके अंदर एक सुलगती आग बना गई। उन्होंने किताबों और समाचार पत्रों के माध्यम से दुनिया की क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन शुरू किया।
3. महात्मा गांधी से मोहभंग और क्रांतिकारी राह
भगत सिंह पहले गांधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित थे, लेकिन जब चौरी-चौरा कांड के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया, तो उन्हें अहिंसा की नीति से मोहभंग हो गया। उन्हें समझ में आ गया कि भारत को स्वतंत्रता सिर्फ भाषणों से नहीं मिलेगी – इसके लिए संघर्ष और बलिदान आवश्यक है।
4. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)
भगत सिंह लाहौर आए और वहाँ 'नौजवान भारत सभा' नामक संगठन की स्थापना की। फिर उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व वाले 'HSRA' से जुड़कर अपने क्रांतिकारी अभियान की शुरुआत की। उनका उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार की नींव हिला देना – ताकि आम जनता जागरूक हो सके।
5. लाला लाजपत राय की हत्या और सांडर्स कांड
जब साइमन कमीशन का विरोध करते समय ब्रिटिश पुलिस ने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई, तब भगत सिंह के दिल में बदले की आग धधक उठी। उन्होंने अपने साथियों – राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर लाहौर में पुलिस अधिकारी सांडर्स को गोली मार दी। यह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला बड़ा प्रहार था।
6. असेंबली में बम फेंकना – आवाज़ जो कभी न रुके
भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केंद्रीय असेंबली (दिल्ली) में बम फेंका – लेकिन यह बम किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं था, बल्कि यह "सुनो हमारी आवाज़!" का प्रतीक था। उन्होंने वहां खड़े होकर नारे लगाए – "इंकलाब जिंदाबाद!" और खुद को गिरफ़्तार करा दिया।
7. जेल में संघर्ष और लेखन
जेल में भगत सिंह ने किताबें पढ़ना जारी रखा – खासकर समाजवाद, पूंजीवाद और क्रांति पर। उन्होंने ब्रिटिश जेल प्रशासन के खिलाफ भूख हड़ताल की, मांग की कि उन्हें राजनीतिक कैदी माना जाए। उनकी कलम भी तलवार से कम धारदार नहीं थी – उन्होंने कई लेख लिखे जिसमें उन्होंने ब्रिटिश अत्याचार और भारत की स्थिति पर सवाल उठाए।
8. फांसी का दिन – लेकिन विचार अमर हो गए
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी। लेकिन यह सिर्फ तीन युवाओं की मौत नहीं थी – यह विचारों की मशाल थी जो पूरे भारत में जल उठी। उनकी अंतिम इच्छा थी – "मुझे क्रांति की गोद में मरने दो।"
9. भगत सिंह की विरासत
आज भी भगत सिंह हर उस युवा के दिल में जीवित हैं जो अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है। उनकी विचारधारा, उनका साहस, और उनका जीवन, आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने एक बार लिखा था – "मैं नास्तिक हूँ, क्योंकि मैं अपने कार्यों पर विश्वास करता हूँ, किसी चमत्कार पर नहीं।"
10. एक विचारधारा, जो कभी नहीं मरेगी
भगत सिंह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे – वह एक दार्शनिक, एक लेखक और एक दूरदर्शी थे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ आज़ादी ही लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक ऐसा समाज भी चाहिए जहाँ शोषण, जातिवाद और गरीबी का अंत हो। उन्होंने एक नया भारत सपना देखा था – और अब वह सपना हमारी ज़िम्मेदारी है।
1. देश के लिए जीना और मरना सीखो
भगत सिंह ने बहुत छोटी उम्र में ही अपना जीवन देश के नाम कर दिया।
👉 प्रेरणा: सिर्फ अपने लिए नहीं, *समाज और देश के लिए भी सोचो।