रवींद्रनाथ टैगोर —जब आत्मा गुनगुनाती है: नीर की कथा 1. प्रस्तावना — अंधेरे में एक दीपक शांतिनिकेतन के एक छोटे से गाँव में, जहाँ झरनों की ध्वनि और बांसों की सरसराहट कविता बनकर बहती थी, वहाँ एक वृद्ध गु…